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Parivarik kahani: सासू मां के वहम का मैं क्या कर सकती हूं

Parivary kahani: ” देखो बहू, मैं तो इस तरह की साड़ियां पहनती नहीं हूं। पर तुम्हारी मम्मी भेजने से बाज भी नहीं आती है। कितनी बार कहा है कि कैश ही दे दिया करें। लेकिन तुम हो कि बोलती ही नहीं। कल कामवाली आए तो उसे दे देना”
ममता जी ने बहु निधि को उसकी मम्मी की लाई हुई साड़ी देते हुए कहा।
पर निधि ने कोई जवाब नहीं दिया। चुपचाप साड़ी ली और अपने पास रख ली। जानती थी कि ये तो ममता जी की आदत है। कोई पहली बार तो ऐसा हो नहीं रहा था। उसने
साड़ी ले जाकर अपनी अलमारी में रख दी।


पूरे पंद्रह सौ रुपए की साड़ी है। ऐसे कैसे कामवाली को दे दे। मम्मी कितने मन से उसकी सास के लिए लेकर आई थी। पर सासू मां को तो कभी भी उसकी मम्मी का लाया हुआ कोई सामान पसंद ही नहीं आता था।
उसकी शादी में भी आई हुई साड़ियों में उसकी सासू मां ममता जी ने खूब कमियां निकाली थी। हालांकि यह अलग बात है कि उनके खुद के रिश्तेदारों को वो साड़ियां खूब पसंद आई थी।


और पता नहीं क्यों उनके मन में हमेशा वहम रहता था कि बहू के मायके से उनके लिए हमेशा हल्की-फुल्की साड़ी आती है। और सिर्फ बहू के मायके के लिए ही नहीं खुद बहू के लिए भी उनके मन में यही सब चलता रहता था। बहु खुद तो अच्छी-अच्छी साड़ियां पहनती है और मेरे लिए हमेशा हल्की-फुल्की साड़ियां लेकर आती है।
और ये बात निधि अच्छे से जानती थी। थोड़ी देर बाद ममता जी निधि के कमरे में आई और बोली,
” बहु ये तुम्हारे पापा जी ने पैसे दिए हैं। करवा चौथ नजदीक आ रहा है तो तुम्हारे लिए नई साड़ी बाजार से ले आना”
” मम्मी जी आप भी साथ ही बाजार चलिए ना। मैं भी आपको अपनी तरफ से एक साड़ी दिलवा दूंगी। जो आप अपनी पसंद से ही खरीद लेना। वैसे भी मम्मी की लाई


साड़ी तो आपने मुझे दे दी। तो फिर मुझे खरीदने की क्या जरूरत है “
” नहीं नहीं, मुझे बाजार नहीं जाना। और वो साड़ी तो तुम्हारी मम्मी ने दी है ना। हमारी तरफ से थोड़ी ना है। तुम तुम्हारी पसंद से खुद ही ले आओ”
कहकर ममता जी कमरे से निकल गई। निधि ने सोचा चलो मम्मी जी नहीं जा रही है तो विशाल को अपने साथ ले जाऊंगी। आखिर मम्मी जी अपने बेटे की पसंद की भी खूब तारीफ करती है। तो वो ही मम्मी जी की पसंद की साड़ी दिला देंगे।


शाम को जैसे ही विशाल घर आया, थोड़ी देर बाद निधि विशाल को लेकर मार्केट रवाना हो गई। वहां से खुद के लिए और ममता जी के लिए साड़ियां खरीद कर ले आई। दोनों साड़ियां एक ही कीमत की थी। साड़ी को देखकर ममता जी ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप ने पास रख ली। दूसरे दिन निधि ने कहा,
” लाइए मम्मी जी, इसका ब्लाउज दे दीजिए। मैं तैयार करवा दूंगी “
” अरे नहीं बहू, मैं अपना ब्लाउज खुद ही तैयार करवा लूंगी। तुम रहने दो “
कह कर ममता जी ने बात को खत्म किया।


लेकिन करवा चौथ के दिन उन्होंने वो साड़ी नहीं पहनी। उन्हें दूसरी साड़ी पहने देखकर निधि ने पूछा,
“मम्मी जी आपने नई साड़ी नहीं पहनी?”
“बहु मुझे ये साड़ी ज्यादा अच्छी लग रही है। इसलिए मैंने ये पहन ली”
” पर विशाल जी कितने मन से आपके लिए वो साड़ी लेकर आए थे। कह रहे थे कि मम्मी को ये साड़ी बहुत अच्छी
लगेगी”


“पता नहीं कौन लेकर आया था। लग तो नहीं रही थी विशाल की पसंद की”
ममता जी धीरे से बुदबुदाई लेकिन निधि को सुनाई दे गया।
‘इनके वहम का मैं कुछ नहीं कर सकती’ मन ही मन सोच निधि अपने काम में लग गई। शाम को विशाल जब घर पर आया तो ममता जी को पुरानी साड़ी में देखकर बोला,


” अरे मम्मी आपने नयी साड़ी नहीं पहनी। आज तो त्यौहार है। कम से कम आज तो नई साड़ी पहनना चाहिए था “
” अरे बेटा बस ऐसे ही। और वैसे भी वो तैयार नहीं थी इसलिए नहीं पहनी”
कहकर ममता जी अपने कमरे में चली गई। इधर विशाल निधि के पास आया और बोला,
” निधि तुमने मम्मी के साड़ी तैयार करवा कर क्यों नहीं दी”
” साड़ी तो तैयार ही थी। हां ब्लाउज के लिए मैंने कहा था। तो मम्मी जी ने कहा कि मैं तैयार करवा लूंगी”
निधि ने कहा।


” निधि तुम्हें ध्यान रखना चाहिए था ना। देखो तुम्हारे कारण मम्मी ने त्यौहार पर पुरानी साड़ी पहन रखी है। जब खुद का
स्टफ तैयार करवाया था तो मम्मी का भी करवा देती। तो वो भी आज नई साड़ी पहन लेती”
विशाल ने थोड़ा बिगड़ते हुए कहा।
” देखिए विशाल जी, मैंने कहा था उनसे। पर उन्होंने खुद मना कर दिया। और वैसे भी वो मेरी लाई हुई साड़ियां
पहनती कहां है”


” तुम औरतें ना वहम ज्यादा रखती हो। इससे अच्छा तो मम्मी से पूछ लेती। और वैसे भी साड़ी मैं अपनी पसंद की लेकर आया था। मम्मी मेरी लाई हुई चीजों को मना नहीं करती”
कहकर विशाल कमरे से निकल गया। वहां से निकल कर वो सीधा अपनी मम्मी के कमरे की तरफ गया। लेकिन उसके
पैर वही बाहर रुक गए। अंदर ममता जी अपने पति से कह रही थी,
” मैं तो कभी ना पहनूं बहू की लाई हुई साड़ियां। खुद के लिए तो देखो कितनी शानदार साड़ियां लेकर आती है। और मेरे
लिए हल्की-फुल्की से उठाकर ले आती है”


” अरे, पर इस बार तो वो विशाल को साथ लेकर गई थी ना। और मैंने सुना ये साड़ी तो विशाल पसंद करके लाया है। और कहां से तुम्हें ये हल्की-फुल्की लग रही है”
” अरे तुम्हें क्या पता? कभी किसी बहू या उसके मायके वालों ने सास को ढंग का दिया है। और विशाल का तो नाम ले रही है ताकि मैं ये साड़ी पहन लूं। मैं तो ना पहनू ये साड़ी”


ममता जी की बातें सुनकर विशाल उल्टे पांव वापस लौट आया और आकर निधि से बोला,
“आइंदा मम्मी के लिए साड़ी खरीदने की जरूरत नहीं है। तुम उन्हें पैसे ही दे दिया करो। ताकि वो खुद अपनी पसंद की साड़ी खरीद सके और त्योहार पर नई साड़ी पहन सके”


इसके बाद किसी भी तीज और त्योहार पर निधि ने कभी कोई गिफ्ट लाकर अपनी सास को नहीं दिया। वो हर
बार बस पैसे निकाल कर दे देती थी।
यहां तक कि अपने मायके वालों को भी कह दिया था कि आपको मेरी सास को देना है तो पैसे दे दिया करो। वो अपनी पसंद का खुद खरीद लेंगी
मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
सर्वाधिकार सुरक्षित

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