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Hindi Kahani Story: एक बड़ा ही धनवान आदमी एक गांव में रहता था। जैसे कि ज्यादातर पैसे वालों को होता है, इस धनवान सेठ को भी अपने पैसों का घमंड था।

Hindi kahani Story : वह जिस गांव में रहता था, वहां पर ज्यादातर लोग किसान थे। इन सभी किसानों के पास जितनी जमीन थी, उससे कई गुना ज्यादा जमीन इस सेठ के पास थी। कई गरीब किसान तो इसके लिए इसके खेतों में काम करते थे।

ईसी गांव में मोहन नाम का एक बड़ा ही मेहनती और सच्चा किसान रहा करता था। मोहन का परिवार थोड़ा बड़ा था, उसके परिवार में उसके बूढ़े मां-बाप, पत्नी और तीन बच्चे थे, जो अभी काफी छोटे थे।

मोहन के पास ज्यादा जमीन नहीं थी, लेकिन जितनी भी थी उसमें वह बड़ी मेहनत करता और अपने परिवार का पेट पालने लायक अनाज उगा लेता था। बाकी के किसान भी यह देखकर हैरान रह जाते कि कोई कैसे इतनी सी जमीन में इतना ज्यादा फसल उगा सकता है।

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1 वर्ष उस गांव में काफी ज्यादा बारिश हुई, जिसके चलते कई किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं, जिनमें से एक मोहन भी था। अब मोहन धर्म संकट में पड़ गया क्योंकि उसके परिवार में उसके अलावा कोई और कमाने वाला था नहीं और अपने परिवार को भूखा मरते हुए वो देख नहीं सकता था।

वह जानता था कि इस गांव में अगर कोई उसकी मदद कर सकता है, तो वह वही घमंडी सेठ है, जिसने गांव के कई अन्य गरीब किसानों को या तो कर्जा दिया है या तो अपने यहां काम पर रखा हुआ है। हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के बजाय उसने इस सेठ के पास जाने का फैसला किया और एक दिन उनके पास पहुंच गया।

सेठ के पास पहुंचकर मोहन बोला – “सेठ जी, आपकी बहुत मेहरबानी होगी अगर आप मुझे थोड़ा सा कर्जा दे दें, जिससे मैं अपने खेतों में फिर से कोई फसल उगा सकूं या फिर आप मुझे अपने यहां नौकरी दे दें ताकि मेरे परिवार को दो वक्त का खाना मिल सके।”

घमंडी सेठ को उसकी इन बातों से कोई मतलब नहीं था, लेकिन गांव के सारे लोगों की तरह वह भी यह जानता था कि मोहन कितना मेहनती है और वह जिस भी खेत में काम करेगा, वहां वह दोगुनी फसल उगा सकता है। सेठ ने सोचा कि अगर मैं इसे पैसे उधार देता हूं, तो शायद यह इस स्थिति में नहीं है कि मुझे वापस लौटा सके, लेकिन अगर मैं इसे अपने खेतों में काम करवाता हूं, तो मुझे जरूर दुगना फायदा होगा।

सेठ मोहन से बोला – “देख भाई, पैसा तो मैं तुझे दूंगा नहीं और मेरे पास अभी खेतों में काम करने के लिए कई किसान पहले से मौजूद हैं, लेकिन तुझ पर तरस खाकर मैं तुझे अपने खेतों में नौकरी देता हूं, पर मैं तुझे इसके लिए ज्यादा पैसे नहीं दूंगा। बाकी किसानों को मैं 300 देता हूं, मैं तुझे 200 ही दे पाऊंगा।”

मरता क्या न करता। मोहन ने सेठ की शर्त मान ली और उसी दिन से सेठ के खेतों में काम करना शुरू कर दिया। 2 महीनों तक नियमित वो सेठ के खेतों में जाकर कड़ी मेहनत करता और देखते ही देखते 4 महीने का काम उसने अपनी मेहनत से 2 महीनों में ही खत्म कर दिया।

सेठ उसके काम से काफी खुश था, लेकिन वह कभी उसे यह जताता नहीं था। जब सेठ ने देखा कि उसका खेतों का काम अब खत्म हो चुका है, अगर वह मोहन को काम से निकाल देता है, तो उसके 2 महीनों के पैसे बच जाएंगे। तब सेठ ने मोहन को काम से निकालने का फैसला किया। एक बार सेठ को यह विचार भी आया कि इतना मेहनती आदमी शायद उसे दोबारा ना मिले, लेकिन फिर उसने सोचा कि जब अगले साल काम आएगा, तब उसे फिर से नौकरी पर रख लेगा। आखिर इस गांव में उसके अलावा है ही कौन, जिसके आगे ये लोग अपने हाथ फैलाएंगे?

1 दिन सेठ ने मोहन को अपने पास बुलाकर उसको उस दिन का पैसा दिया और साथ में यह भी कहा कि “कल से तुमको काम पर आने की जरूरत नहीं है। अब मेरे पास तुम्हारे लिए कोई काम नहीं बचा है।”

यह सुनकर मोहन का दिल बैठ गया। पिछले 2 महीनों से कम ही सही, उसके बच्चों और परिवार के पेट में अन्न का दाना जा तो रहा था, अब वह क्या करेगा? यही सोच कर उसकी आँखों से आँसू निकल आए। मोहन ने सेठ के पैर पकड़ लिए और गिड़गिड़ाते हुए कहा – “सेठ जी, मुझे इस काम की बहुत जरूरत है। मुझे मत निकालिए।”

अपने मतलब से मतलब रखने वाला सेठ टस से मस ना हुआ, उसने खरी-खोटी सुनाकर मोहन को वहां से चलता कर दिया। और मन ही मन 2 महीनों की तनख्वाह बचने से खुश होने लगा।

अगले दिन जब सेठ सवेरे उठा और अपने आंगन में आया, तो उसने देखा कि मोहन उसके आंगन में बैठा है! सेठ ने उसे पास बुलाकर पूछा कि “क्या हुआ, तुम क्यों यहां पर बैठे हो?” मोहन बोला – “सेठ जी, मुझे वापस काम पर रख लीजिए। आप जानते ही हैं मेरी आर्थिक परिस्थिति कैसी है? थोड़ी दया कीजिए।”

लेकिन सेठ ने उसकी एक न सुनी और फिर एक बार उसे बुरा-भला कह कर वहां से जाने के लिए कहा। बेचारा मोहन अपना सिर नीचे झुका के वहां से चला गया।

अगले दिन फिर यही घटना दोहराई गई। मोहन फिर सेठ के आंगन में बैठा था। सेठ ने फिर उसे वहां से जाने के लिए कहा। यही घटना अगले कई दिनों तक चलती रही। अब तो मोहन सेठ के हकाल ने पर भी वहां से नहीं जाता था और वहीं पर बैठा रहता था।

एक बार सेठ ने उससे पूछ लिया – “तुम कैसे आदमी हो? मैं तुम्हारा इतना अपमान करता हूं, लेकिन तुम्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता।”

तब मोहन ने सेठ से कहा – “बुरा तो बहुत लगता है, सेठ जी, लेकिन जब घर जाता हूं और भूख से बिलखते अपने मां-बाप और बच्चों को देखता हूं, तब यह अपमान मुझे कुछ भी नहीं लगता।”

इतना सब कुछ होने के बाद भी सेठ का दिल जैसे पत्थर का बना हुआ था, उसने मोहन को अभी तक काम पर नहीं रखा और ना ही उसका ऐसा करने का कोई इरादा था। 1 दिन सेठ ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए किसी और गांव चला जाता हूं ताकि मोहन से पीछा छुड़ा सकूं।

अगले दिन मोहन के आने से पहले ही सेठ अपने परिवार को लेकर अपने किसी संबंधी के यहां चला गया और वहां पर 10 दिनों तक रहने के बाद फिर अपने गांव, अपने घर वापस लौटा। घर लौटते ही सेठ ने आसपास हर जगह नजर दौड़ाई तो पाया कि वहां पर अब मोहन नहीं था। सेठ ने सोचा – “मेरी तरकीब काम कर गई। लगता है मोहन से अब पीछा छूट गया है।”

हालांकि अब सेठ के द्वार पर मोहन नहीं बैठा था, लेकिन मोहन का विचार अभी भी सेठ के मन में घर कर बैठा था। सेठ सोच रहा था – “मोहन इतनी जल्दी हार मानने वाला आदमी तो नहीं दिखता है। उसके साथ क्या हुआ होगा? क्या उसे कहीं कोई और काम मिल गया होगा? या फिर और कुछ?”

इन विचारों ने सेठ को बेचैन कर दिया और आखिरकार सेठ को मोहन की खबर लेने के लिए गांव में जाना पड़ा।

सेठ को मोहन का पता नहीं मालूम था, इसलिए अड़ोस-पड़ोस के अन्य किसानों से पूछने पर पता चला कि मोहन घायल हो चुका है और अपने घर पर आराम कर रहा है।

सेठ ने जब उसके घायल होने का कारण लोगों से पूछा, तो सेठ को पता चला कि जब सेठ अपना घर छोड़कर किसी और गांव में गया था, तब बंद घर देखकर कुछ चोर उसके यहां चोरी करने आए थे, जिनको रोकने की कोशिश करते हुए हाथापाई में मोहन चोटिल हो गया था।

यह सब जानने के बाद सेठ का पत्थर का दिल भी अब मोम की तरह पिघल गया। सेठ को अपने किए पर पछतावा होने लगा। सेठ ने अपने आपको याद दिलाया कि कैसे उसने एक शरीफ और सच्चे आदमी को ज्यादा काम करवा कर भी उसे पूरा पैसा नहीं दिया और जिसको गले से लगाना चाहिए था, उसे ठोकर मार कर भगाता रहा।

सेठ मोहन का घर का पता पूछकर उसके घर पहुंचा, तो देखा कि मोहन के घर की हालत बहुत खराब है। उसका परिवार भूख से बेहाल है और वह खुद अपने हाथ-पैर पर चोट के साथ एक खाट में पड़ा हुआ है।

यह दृश्य देखकर सेठ की आंखों से आंसू बह निकले। सेठ ने मोहन के पास जाकर उससे सच्चे दिल से माफी मांगी। उसको उसकी मेहनत के पैसे दिए, उसका इलाज करवाया और उसे हमेशा के लिए अपने यहां काम पर रख लिया।

दोस्तों, इस खूबसूरत कहानी से हमें कई पाठ सीखने के लिए मिलते हैं।


कहानी से सीखने योग्य पाठ:

पहला पाठ:अगर भगवान ने हमें दूसरों से बेहतर जिंदगी दी है, तो हमें उसका फायदा नहीं उठाना चाहिए और हो सके तो जरूरतमंदों की जिंदगी में भी सुधार करने की कोशिश करनी चाहिए।

दूसरा पाठ: कठिन से कठिन समय में ईमानदारी और सच्चाई का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। हां यह मार्ग बड़ा कठिन है लेकिन इसकी मंजिल तक आदमी जरूर पहुंचता है और उसका फल भी अच्छा ही मिलता है।

तीसरा पाठ : जब तक हम अपने बारे में सोचना बंद नहीं करते तब तक हम दूसरे के बारे में सोच नहीं सकते और उसका दर्द नहीं समझ सकते। किसी ने खूब कहा है खुद के लिए जिया तो क्या जिया? दूसरों के लिए जीना ही जिंदगी है।

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