Desi Kahani 2 : रघुवीर के बेटे शिवपाल की तीसरी सगाई की चर्चा चल रही थी। पहले दो बार सगाई टूट चुकी थी, इस कारण शिवपाल और उसके परिवार ने इस बार काफी सतर्कता बरतने का निर्णय लिया। पिछली गलतियों से सीखते हुए, हर कदम सोच-समझकर उठाया जा रहा था। रघुवीर ने पुराने अनुभवों को ध्यान में रखते हुए इस बार कुछ शर्तें रखने का फैसला किया।
रघुवीर ने कहा, “लड़का पढ़ा-लिखा है और सरकारी नौकरी में है। हमारा परिवार भी सम्मानित है, इसलिए इस बार हमें दहेज में कुछ नकद चाहिए। हमारे पास पहले से ही सभी चीजें हैं, तो इस बार सिर्फ पैसे ही चाहिए।” रघुवीर ने साफ तौर पर अपनी माँग रखी, जो परिवार के स्टेटस और प्रतिष्ठा के हिसाब से तय की गई थी।
लड़की वालों ने इस स्थिति पर विचार करते हुए सोचा, “शिवपाल अच्छी नौकरी करता है, और उसका परिवार भी प्रतिष्ठित है। अगर कुछ नकद दे दिया जाए तो इसमें कोई हानि नहीं। लड़का अच्छा है, तो यह एक बार का खर्चा मानकर इसे सहन कर लेना चाहिए।”
काफी बातचीत के बाद यह तय हुआ कि दहेज के रूप में पाँच लाख रुपये नकद दिए जाएँगे। इस समझौते से दोनों परिवार संतुष्ट थे और शादी की तारीख तय हो गई।
शादी के दिन, रघुवीर अपनी बारात लेकर लड़की वालों के घर पहुँचा। सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं, और पंडित जी ने फेरे शुरू करने के लिए कहा। लेकिन रघुवीर ने बीच में टोका, “पहले दहेज की रकम दी जाए, फिर फेरे होंगे।” लड़की के पिता ने घबराते हुए रुपयों से भरा बैग रघुवीर को थमा दिया, और तभी फेरे की अनुमति दी गई।
शादी की सभी रस्में खुशी से पूरी हो गईं, और बारातियों की धूमधाम से खातिरदारी की गई। सबकुछ सही ढंग से हो जाने के बाद, विदाई की तैयारी शुरू हुई। जब डोली की विदाई का वक्त आया, रघुवीर ने अचानक रुपयों से भरा बैग लड़की के पिता को वापस लौटा दिया। यह देख लड़की का पिता चौंक गया और सोचने लगा कि कहीं अब कोई नई शर्त तो नहीं आने वाली है।
रघुवीर ने उसके चेहरे की उलझन भांपते हुए कहा, “आप चिंता न करें। मैं बस यह पैसा लौटा रहा हूँ।” लड़की के पिता हैरानी से बोले, “लेकिन आपने ही तो दहेज की माँग की थी, फिर अब क्यों लौटा रहे हैं?”
रघुवीर ने शांत स्वर में जवाब दिया, “आप सही कह रहे हैं। दरअसल, मेरे बेटे की पहले दो बार सगाई टूट चुकी थी क्योंकि हमने दहेज नहीं लिया था, और लोग शक करने लगे थे कि शायद लड़के में कोई कमी है। इसलिए इस बार मुझे मजबूरी में दहेज की माँग करनी पड़ी। लेकिन अब, जब शादी हो चुकी है, और हम सब इस रिश्ते से खुश हैं, तो मुझे इस पैसे की कोई जरूरत नहीं है।”
यह सुनकर वहां मौजूद सभी लोग भावुक हो गए। रघुवीर का यह कदम चौंकाने वाला था, लेकिन साथ ही उसकी ईमानदारी और सामाजिक सोच की सबने सराहना की। उसने साबित कर दिया कि दहेज की प्रथा को चुनौती देना कठिन हो सकता है, लेकिन अगर इरादे मजबूत हों, तो बदलाव संभव है। इस तरह, रघुवीर ने न केवल अपने बेटे की शादी को सफल बनाया, बल्कि समाज को भी यह संदेश दिया कि असली मूल्य रिश्तों और भावनाओं में होता है, न कि धन-दौलत में।