Hindi Kahani: जो बेटी मायके की कमियों को ढक सकती है वो बहू बनने के बाद ससुराल की कमियों को क्यों नहीं ढंक पाती

” माफ करना समधन जी, लेकिन एक बेटी अपने मायके की दस कमियों को भी ढंक लेगी। लेकिन जब वही बेटी ससुराल में बहू बनकर जाती है तो अपने ससुराल की छोटी से छोटी कमी को नहीं ढंक पाती”
सुधा जी ने अपनी समधन ममता जी से कहा।
” समधन जी आप कहना क्या चाहती है अब क्या मेरी बेटी मुझे बताए भी नहीं कि उसे क्या परेशानी है। और हमने कभी अपनी बेटी को कमियों में नहीं पाला। हमेशा उसकी इच्छा उसके बोलने से पहले ही पूरी की है”
ममता जी तुनकते हुए बोली।


” जरूर की होगी समधन जी। मैं कब मना कर रही हूं। आखिर माता-पिता अपने बच्चों के लिए बेहतर करने की कोशिश करते हैं। अपने से पहले अपने बच्चों को रखते हैं
लेकिन एक बात बताइए। क्या कभी आपको कोई कमी नहीं हुई”
सुधा जी ने कहा।
” अरे समधन जी घर गृहस्थी है। कमियां तो हर घर में होती ही रहती है। लेकिन क्या उन कमियों में कटौती सबसे पहले बहू के हिस्से से ही करोगे। क्या आपने अपने खर्चों में कटौती कर ली, जो मेरी बेटी के खानपान में कटौती कर रही हो “
ममता जी अपने हाथों को नचाते हुए बोली।


उनकी बातें सुन सुनकर सुधा जी अपना सिर पकड़ कर बैठी हुई थी। जिसे समझ में आए उसे समझाए भी। जो समझना ही नहीं चाहता उसे क्या समझाए।


जबकि उनकी बहू निशि एक कोने में ऐसे खड़ी हुई थी जैसे मानो ससुराल वालों ने अत्याचार कर करके उसका जीना
दुश्वार कर रखा है। उसकी मम्मी जो मन में आ रहा था वो सुधा जी को सुना रही थी और वो चुपचाप खड़ी-खड़ी सुन रही थी।


निशि को सुधा जी की बहु बनकर आए हुए आठ साल हो चुके थे। जब वो शादी होकर घर में आई थी तब किसी चीज की कमी नहीं थी। लेकिन अभी पांच महीने पहले बिजनेस में जबरदस्त लॉस ने घर की स्थिति को हिला कर रख दिया। जाहिर सी बात है कि घर के खर्चों में भी कटौती होना शुरू हो चुकी थी। आर्थिक स्थिति रिश्तो में कितनी खटास पैदा कर देती है, ये अब समझ में आ रहा था।
कटौती हर चीज में से हो रही थी। पर पता नहीं क्यों निशि को लगा कि सारी कटौती उसके लिए ही हो रही है। निशि शुरू से ही हाथ खोलकर खर्च करती आई थी इसलिए वो इस कटौती
को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।


अब ना वो पहले की तरह किटी पार्टी कर पा रही थी और ना ही अब ज्यादा घूमना फिरना हो पा रहा था। यहां तक कि सात साल की बेटी का ट्यूशन भी हटा दिया गया
था। उसे भी खुद से पढ़ाना पड़ता था। पर उसे पढ़ाने की जिम्मेदारी तो सुधा जी ने ले रखी थी।
पर ये तो उसके स्टैंडर्ड के खिलाफ था। उसकी सारी सहेलियों के बच्चे तो ट्यूशन पढ़ते थे, बस उसकी बेटी ही नहीं। ऊपर से रोज-रोज बाहर से खाने पीने की चीज मंगाये जाने पर भी उन्होंने रोक लगा दी थी। निशि को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी। क्योंकि निशि की ही आदत थी आए दिन कुछ ना कुछ बाहर से मंगा कर खाने की। तो उसे ये लगने लगा कि उसकी सास उसके खाने पीने पर भी रोक-टोक करने लगी है।

आखिर जब सुधा जी ने कोई जवाब नहीं दिया तो ममता जी बोली,
” सही कहा है किसी ने। अगर घर में कभी कमी होती है तो सबसे पहले बहू के ही खाने पीने और खर्चों पर रोक-टोक लगती है। मेरी बेटी मुझे भारी नहीं हुई है। आज भी खिला पिला सकती हूं मैं उसे। ले जा रही हूं मैं उसे यहां से। आप ही संभालिए अपना घर”
कहकर ममता जी अपनी बेटी निशि को अपने साथ ही ले गई। लेकिन सुधा जी ने उसे रोका नहीं। जो बहू अपने घर की
स्थिति ही नहीं समझना चाह रही, उसका भला क्या कर सकते हैं। जब अच्छे दिन थे तो भला उन्होंने कब उस पर रोक-टोक लगाई थी।


इधर निशि जब अपनी मम्मी के साथ मायके पहुंची तो उसके भाई भाभी सब हैरान रह गए। लेकिन ममता जी और निशि ने जिस तरह से बात को बड़ा चढ़ा कर उनके सामने पेश किया तो वो भी कुछ ना बोल पाए। उन्हें भी लगा कि शायद निशि के ससुराल वाले उसे परेशान कर रहे हैं
” अरे तो परी कहां है? उसे लेकर नहीं आई?”
भाई ने पूछा।


“अरे! उनकी पोती है। संभालेंगे अपने आप ही। जब खुद संभालेंगे तब पता चलेगा”
कहकर ममता जी ने अपने बेटे को भी चुप करा दिया। लेकिन भाभी को निशि का यूं आना अजीब लग रहा था। वो जानती थी कि उसके ससुराल वाले इतने बुरी नहीं है। उन्होंने कभी भी निशि पर रोक-टोक नहीं लगाई। अभी उसके ससुराल में स्थिति खराब चल रही है। ऐसे में निशि को अपने ससुराल में होना चाहिए। पर ममता जी से क्या कहे। इसलिए चुप रह गई।


लेकिन कमरे में आने के बाद उसके भाई ने सुधा जी को फोन किया और उनसे सब कुछ पूछा। तो उसे सब कुछ समझ में आया कि निशि किन हालात में वहां से आई है। और मम्मी ने कैसे उसके गलत में साथ दिया है।
” हे भगवान! ससुराल की आर्थिक स्थिति कमजोर क्या हुई, निशि सब कुछ छोड़ कर आ गई। जबकि हमारा घर तो शुरू से ही मध्यम वर्गीय है। मुझे तो उसकी हरकत बिल्कुल सही नहीं लग रही है “


भाई ने कहा और अपनी पत्नी की तरफ देखने लगा। कमरे में खामोशी से पसर गई।
शाम को निशि ने पिज़्ज़ा ऑर्डर किया। और वही खाकर सो गई। खैर दूसरे दिन सुबह भाभी ने नाश्ते में पोहे बनाए तो उसने नाक भौ सिकोड़ लिए और बाहर से खाना ऑर्डर कर लिया। लेकिन ममता जी ने तब भी निशि का ही साथ दिया।
लेकिन अब तो ये हर बार की बात होने लग गई थी। पांच दिन में निशि ने कई बार खाना बाहर से आर्डर कर लिया। और ममता जी तो उसे रोक भी नहीं रही थी। आखिर उसकी भाभी ने उसके भाई से ये बात की।
यह देखकर भाई ने कहा,


” अरे तू घर का खाना भी खाती है या बाहर से मंगाती रहती है”
” भाई आपको पता है ना मुझे ये सब चीजें पसंद है। तो फिर क्यों मेरी सास की तरह रोक-टोक कर रहे हो”
निशि ने तुनकते हुए कहा
” क्यों टोक रहा है उसे। खा लेने दे “


ममता जी बोली।
” मम्मी ये घर का खाना खाती कब है? आए दिन तो बाहर से मंगाती रहती है। या फिर बाहर घूमने चली जाती है। और वहीं से खा कर आती है। पैसों की बर्बादी भी है, साथ ही साथ सेहत का नुकसान भी”
” तो तेरे पैसों से खा रही है क्या? अभी तो मैं खर्च कर रही हूं। पेंशन आती है मेरे पास। खबरदार जो मेरी बच्ची के खाने
पीने पर रोक-टोक लगाई तो”
ममता जी बिगड़ते हुए बोली।


“मम्मी जी बात पैसों की नहीं है। बात है सही और गलत की। आपको पता नहीं है क्या कि ये बाहर का खाना नुकसान
पहुंचाता है। ऊपर से आप ऐसी चीज के लिए दीदी का साथ दे रहे हो, जो गलत है। आपकी बेटी का घर बिगड़ रहा है आपको दिख नहीं रहा”
अबकी बार भाभी ने कहा।


” बहु तुझे ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं है मेरी बेटी है मैं उसका सही और गलत अच्छे से जानती हूं। आज मेरी बेटी परेशानी में है तो उसका साथ देने की जगह तू सुना रही है। क्या यही एक बहू के लक्षण होते हैं”


” मम्मी जी ये बात जो आप मुझे समझा रही है वो आप दीदी को समझाती तो ज्यादा अच्छा होता। आज उनका परिवार मुसीबत में है और ये कमियों का रोना रो कर यहां आकर बैठ गई। दीदी कोई अमीर घर में पैदा नहीं हुई थी। हमारा घर भी मध्यम वर्गीय ही है। इसलिए जो समझाइश आप मुझे दे रही है, काश वही अपनी बेटी को देती तो इतना तमाशा तो नहीं होता”
आखिर अपनी बहू के मुंह से ये बातें सुनकर ममता जी चुप हो गई। क्योंकि वो अच्छे से जानती थी कि कमियां उनके
घर में भी है। बावजूद उसके उनकी बहू ने हमेशा उनका साथ ही दिया है।


” मेरे माता-पिता ने भी मेरे सारे शौक पूरे किए हैं। बावजूद उसके ससुराल में कमियों के साथ खुद को ढाला है मैंने। कभी इस बात की मायके में शिकायत नहीं की। क्योंकि आज कमी है तो कल अच्छे दिन भी होंगे। यही कारण है कि आप भी मुझे इतना मानती है। दीदी पढ़ी लिखी है। चाहती तो अभी इस समय अपने परिवार के साथ खड़ी हो सकती थी। लेकिन इन्होंने क्या किया? सब कुछ छोड़-छाड़ कर आ गई। और कमी भी ससुराल वालों में ही बता रही है। क्या ये सब एक बहु के लक्षण है”


आखिर बहू की बात को सुन कर ममता जी को समझ में आ गया कि उन्होंने निशि को यहां लाकर गलती की है। ऐसे में उन्हें अपनी बेटी को समझाना चाहिए था।


खैर, अपनी गलती को सुधारने के लिए थोड़ी देर बाद वो खुद ही अपने बेटे के साथ निशि को उसके ससुराल छोड़ने के
लिए रवाना हो गई। आखिर उन्हें सुधा जी से माफी भी तो मांगनी थी।
मौलिक व स्वरचित
✍️ लक्ष्मी कुमावत
सर्वाधिकार सुरक्षित

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